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Sunday, December 5, 2021

रूसी क्रांतिकारी विचारक प्रिन्स क्रोपोटकिन

रूसी क्रांतिकारी विचारक प्रिन्स  क्रोपोटकिन का कथन था कि मानव समाज की जीवन में ऐसे अवसर आया करते हैं जब क्रांति एक अनिवार्य सामाजिक आवश्यकता हो जाया करती है जब पुकार कर कहती है कि वह अवश्यंभावी है तब समाज को भी क्रांति की ऐसी आंधी की आवश्यकता दिखलाई देने लगती है जो अपने पवित्र पावन से आलसी हृदय में स्फूर्ति दे और समाज में श्रद्धा आत्म त्याग तथा वीरता के भाव का संचार करते हैं.

        स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सन 1918 में ब्रिटिश सरकार मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार योजना लेकर आई इसमें अन्य बातों के अलावा सबसे प्रमुख बात यह थी कि 10 वर्ष बाद एक कमीशन नियुक्त किया जाना था कमीशन यदि वातावरण अनुकूल समझेगा तो भारतीयों को उत्तरदाई शासन सौंप दिया जाएगा ऐसा आश्वासन भी दिया गया था.

           तदनुसार 10 वर्षों बाद सन 1928 में एक अंग्रेज मिस्टर साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया गया जिसके सभी सातों सदस्य अंग्रेज ही रखेगा इसी वर्ष जब साइमन कमीशन भारत के लिए रवाना हुआ तो कांग्रेस व अन्य सभी दलों ने इसका देश भर में बहिष्कार कर प्रबल विरोध किए जाने का निश्चय किया.

            उपयुक्त घटनाक्रम के कुछ वर्षों पूर्व भी उत्साही नवयुवक सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों के भेज पितामह श्री सचिंद्र नाथ सान्याल के संपर्क में आकर उनसे प्रभावित होकर उन्हीं के द्वारा स्थापित क्रांतिकारी संस्था हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन चुके थे.

        भगत सिंह की अनिच्छा के बावजूद जब घरवालों ने उनके विवाह के प्रयास तेज कर दिए तो भगत सिंह 3 साल की सहायता से लाहौर छोड़कर कानपुर चले आए जहां श्री संध्या ने उनका परिचय प्रताप के क्रांतिकारी संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी से करा कर उन्हें उनके प्रताप प्लस में रखवा दिया भगत सिंह ने अपना नाम बदलकर बलवंत रख लिया एवं इसी नाम से लिखा दी वापस के अन्य कार्य करने लगे यह सन उन्नीस सौ 23 24 की बात है.

                 शीघ्र ही भगत सिंह क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय बटुकेश्वर दत्त विजय कुमार सिंह एवं चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए इनके अधिक प्रतापपुर उसमें पूर्व से ही कार्य क्रांतिकारियों सुरेश चंद्र भट्टाचार्य एवं रामदुलारे त्रिवेदी से उनकी मित्रता हो जाना स्वाभाविक ही था.

               1925 में सुप्रसिद्ध काकोरी षड्यंत्र कान के अंतर्गत क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू हो जाने पर कानपुर के प्रमुख क्रांतिकारी सुरेश चंद्र भट्टाचार्य्या राज कुमार सिन्हा एवं रामदुलारे त्रिवेदी को भी पकड़ शेखर आजाद एवं कुंदन लाल गुप्ता फरार हो गए सभी प्रमुख क्रांतिकारियों के पकड़े जाने और लंबी सजाएं हो जाने के कारण क्रांतिकारी संस्था हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन एक प्रकार से विचलित हो चुकी थी परंतु भगत सिंह फरारी जीवन व्यतीत कर रहे महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से किसी प्रकार संपर्क स्थापित का उन्हीं के नेतृत्व में संस्था को पुनः संगठित करने का ग्रुप पर कार्य किया.

           अब तक भगत सिंह क्रांतिकारियों के बीच से एक दार्शनिक व उच्च कोटि के चिंतक के रूप में उभर कर सामने आ चुके थे इन्हीं के प्रयास से सन 1928 में संस्था के प्रमुख उद्देश्य पूर्ण तंत्र की स्थापना एवं मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण ना हो के मद्देनजर संस्था का नया नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट एसोसिएशन रख दिया गया भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने देश भर में बिखरे पड़े क्रांतिकारी साथियों को संस्था में लाकर पुनः सक्रिय इनमें प्रमुख पर बड़केश्वर दत्त यतींद्र नाथ दास राजगुरु किशोरीलाल विमल प्रसाद जैन शिव वर्मा जयदेव कपूर डॉक्टर गया प्रसाद सुखदेव सुशीला देवी दुर्गा देवी वोहरा दुर्गा भाभी प्रोफेशन नंदकिशोर निगम एवं श्री विजय कुमार सिन्हा.

          अगस्त 1928 को संस्था की दिल्ली चल शेखर आजाद को संस्था के अंतर्गत हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी का कमांडर इन चीफ नियुक्त किया गया इसी बैठक में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने कोलकाता सहारनपुर आगरा और लाहौर में बम फैक्ट्री बनाने तथा सरकारी खजाने को लूट कर रकम जमा करने का निर्णय लिया गया.

            आता 30 अक्टूबर 1928 को कुख्यात साइमन कमीशन देश का दौरा करते हुए जब लाहौर पहुंचा तो वहां भी उसे अन्य स्थानों की तरह भारी विरोध का सामना करना पड़ा भगत सिंह एवं उनके साथियों ने लाहौर में प्रदर्शन एवं हड़ताल में बढ़ चढ़कर भाग लिया इस दौरान लाहौर में पूर्ण हड़ताल थी अधिकांश लोग काले कपड़े पहने हुए थे हार और अद्भुत उत्साह था पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में निकल रहे विशाल जुलूस में महिलाओं और बच्चों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया.

                 जुलूस में साइमन कमीशन वापस जाओ के जोरदार नारे लग रहे थे जुलूस इतना विशाल था कि पुलिस उसे पाने में असमर्थ थी इसके बावजूद लाहौर के पुलिस अधीक्षक जे एस्कॉर्ट ने हड़ताल एवं प्रदर्शन कर रहे जुलूस को तितर-बितर करने के लिए उस पर लाठीचार्ज का आदेश दिया ना ठीक ही पहली चोर लाला लाजपत राय की छाती पर पड़ी दूसरी उनके कंधे पर तीसरी उनके सिर पर लालाजी बुरी तरह लहूलुहान हो गया सारा दृश्य भगत सिंह जी देख रहे थे वे आवेश में आकर प्रतिक्रिया में लाठी चला रहे पुलिसवालों की ओर लपके ही थे कि लालाजी ने स्वयं चिल्लाकर बनेगी तक बने रहने को कहा इस पर भगत सिंह मन मसोसकर घायलों की देखभाल करने में जुट गए उधर लहूलुहान लाला जी को युवकों की भीड़ में तुरंत अपने घेरे में लेकर जमीर रही और साइमन वापस जाओ का नारा लगाते रहे गंभीर रूप से घायल हो जाने के बावजूद लालाजी ने पूर्व निर्धारित विशाल जनसभा में पहुंचकर गर्जना की घोषणा करता हूं कि मुझ पर जो लाठियां बरसाई गई है भारत में ब्रिटिश शासन की आखिरी कील साबित होगी 18 दिन बाद 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई.

        इस घटना से देश भर में सुख एवं शोक की लहर दौड़ गई देश भर के सारे अखबारों ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए लिखा कि संपूर्ण राष्ट्र में फैले आक्रोश का अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब लाला जी की मृत्यु पर कलकत्ता में विशाल शोक सभा हुई तो देशबंधु चितरंजन दास की पत्नी बसंती देवी ने उस सभा में क्रांतिकारियों का खुल्लम-खुल्ला हवन करते हुए कहा नौजवानों को भी चाहिए रीवा राष्ट्रीय अपमान का बदला ना ले सके.

         सारे देश की इस मांग को सर आंखों पर लेते हो भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद ने दिसंबर 1928 को लाहौर में अपने साथियों की एक विशेष बैठक की बैठक में राष्ट्र के सम्मान का तुरंत बदला लेने का निर्णय किया गया लाला जी की मृत्यु नवंबर माह की 17 तारीख को ही थे अपेक्स कोर्ट को मारने की तिथि भी दिसंबर माह की 17 तारीख की निश्चित की गई इस कार्य को अंजाम देने के लिए सभी साथियों ने अपने आप को प्रस्तुत किया अंततः भगत सिंह ही इस कार्य के लिए चुने गए उनकी सहायता के लिए पार्टी के दो सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज आजाद हुआ राजगुरु एवं स्पॉट को पहचानने के लिए जय गोपाल का जाना तय हुआ 1 सप्ताह तक पुलिस अधीक्षक एस्कॉर्ट की गतिविधियों का अध्ययन किया गया निश्चित तिथि 17 दिसंबर 1928 को सभी साथी पुलिस अधीक्षक कार्यालय के बाहर पहुंचकर योजना अनुसार अपनी अपनी पोजीशन लिए दोपहर के 4:20 तो नहीं अपनी मोटरसाइकिल कार्यालय से बाहर निकला जो ही वह मुख्य द्वार से बाहर निकल कर सड़क पर आया वहां खड़े जय गोपाल ने रुमाल हिला कर अपने साथियों को संकेत दे दिया संकेत पादे सबसे पहले राजगुरु ने सांडर्स पर गोली चलाई पहली गोली में वह मोटरसाइकिल से में जमीन पर गिरता ढेर हो गया और भगत सिंह इतने आक्रोश में थे कि राज गुरुद्वारा विश्वास दिलाया जाने के बावजूद किसान रस का काम तमाम हो गया वे सैंडल के पास पहुंच कर उस पर दनादन अपनी सारी गलियां खाली कर बैठे.

         हेड कॉन्स्टेबल चलन सिम उनके पीछे दौड़ा इस प्रकार का कोई भी खतरा होने पर उन्हें सुरक्षा प्रदान करने हेतु चंद्रशेखर आजाद निकट ही डीएवी कॉलेज की दीवार पर पहले से तैयार थे आजाद ने जब देखा कि चरण सिंह भगत सिंह को पकड़ने वाला ही है तो पहले उन्होंने चरण सिंह को रुक जाने की चेतावनी पर चलने ना कर पीछा करना जारी रखा आता चरण सिंह पर अचूक निशाना सत्कार आजाद ने अपनी जबरदस्त निशानेबाजी का परिचय दिया चरण सिंह भाई ढेर हो गया सभी साथी रे अभी कॉलेज के हाथे को पार करते हुए सुरक्षित बच निकला अगले दिन अखबार में यह खबर प्रमुखता के साथ छपी साथी लाहौर में जगह-जगह दीवारों पर चिपके मिले हम लोगों ने राष्ट्रीय अपमान का बदला ले लिया लाहौर और उसके आसपास सीआईडी का जाल बिछाना स्वाभाविक था उस समय लाहौर से बच निकलना किसी करिश्मे से कम नहीं था परंतु क्रांतिकारियों ने यह करिश्मा कर दिखाया.

        क्रांतिकारी सुखदेव की बनाई योजना सर भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी और केस कटवा लिया और टाई सूट और बेल्ट हेड पहनकर सुखदेव के साथ दुर्गा भाभी के घर पहुंचे उनके साथ राजगुरु भी नौकर की वेशभूषा में थे उन दिनों दुर्गा भाभी के पति क्रांतिवीर भगवतीचरण वोहरा कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में कोलकाता गए हुए थे और भाभी को उसके बच्चे सच्ची के साथ घर में अकेली थी सुखदेव के साथ आए तो अपने विचारों को देख पहले तो भाभी सुखदेव पर अंग्रेजों ने भगत सिंह का असली परिचय कराया तो भाभी आवेगी.

          नितिन भोर पहर पूर्व योजना अनुसार वे तीनों कोलकाता जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए घर से बाहर निकल गए लाहौर स्टेशन पांच जगह जगह पर गुप्त चरो का जाल बिछा हुआ था आने जाने वाले प्रत्येक यात्रियों पर भी नजर रख रहे थे ठीक समय पर वे तीनों स्टेशन पहुंच गया लाहौर में सर्दियों में चलने वाली तेज हवा का पूरा लाभ उठाते हुए भगत सिंह देवल कोट पहन रखा था. सिर पर रखी फेल्ट हेड दाई तरफ इस प्रकार झुकी हुई थी कि चेहरा साफ न दिखे उनकी बाइक बहुत में छोटा बच्चा सचिव बाई तरफ का चेहरा भी साफ ना दिखे दाया हाथ रिवाल्वर सहित जय मेहता साथियों ने यह तय कर रखा था यदि किसी ने भी उन्हें रोककर पूछताछ करने की कोशिश की तो उसका जवाब गोलियों से दिया जाएगा भगत सिंह और भाभी इत्मीनान से कलकत्ता मिल की द्वितीय श्रेणी के कूपे में सच्ची को साथ भगत सिंह की अपने जीवन की यह पहली और अंतिम कोलकाता यात्रा थी यही उनका परिचय के अधिकारियों के बीच बम विशेषज्ञ के रूप में प्रसिद्ध क्रांतिकारी यतेंद्र दांत दांत से हुआ था.

             8 अप्रैल 1929 को दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में जन विरोधी ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश होने वाले थे इन बिलों के जरिए सरकार को श्रमिक हड़ताल ऊपर रोक लगा कर हड़ताल करने तथा कराने वालों एवं सरकार के खिलाफ मुंह खोलने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं में नेताओं को बिना मुकदमा चलाए अनिश्चितकाल तक जेल में बंद करने का अधिकार मिलने वाला था.

          उपयोग पर निर्धारित तिथि को क्रांतिवीर भगत सिंह युवा बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में पहुंच करो उन दोनों बिलों को पेश किए जाते समय विरोध स्वरूप दो बम विस्फोट किया इस विस्फोट के साथ ही दोनों क्रांतिवीर देश में सर्वप्रथम इंकलाब जिंदाबाद का नारा खड़े रहकर लगातार लगाते रहे पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया.

               दिल्ली में सजा सुनाए जाने के बाद उन दोनों को लाहौर लाया गया जहां इन पर और इनके अन्य साथियों पर द्वितीय लाहौर षड्यंत्र कांड के अंतर्गत मुकदमा चलाया गया सारे नियम कानून ताक पर रखकर ना वकील ना डाली ना फील के तहत इस मुकदमे का फैसला सुना दिया गया फैसले में भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव को फांसी और अन्य साथियों को 7 साल से लेकर आजीवन कालापानी तक का दंड दिया गया.

            देश के कई बड़े नेताओं ने लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह से भेंट कर उन्हें समझाने का प्रयास किया कि फांसी से बचने के लिए हुए दया याचिका प्रस्तुत कर दे परंतु भगत सिंह इस प्रस्ताव से कतई सहमत नहीं हुए उनका तर्क था कि उनके बलिदान से देश में उत्तेजना और राजनीतिक चेतना पहले ही में देश के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी.

               नियमानुसार फांसी हमेशा भंवर पर दी जाती है परंतु 24 मार्च 1931 को निर्धारित तिथि होने के बावजूद बैटरी जिलाधिकारी फांसी गुप्त रखने के उद्देश्य 23 मार्च 1931 की सारी गाली फांसी देने की तैयारी करने लगे लाहौर जेल के निकट ही एक इंजीनियर साहब का बदला था जेल के अंदर लग रहे हो दारु इंकलाब जिंदाबाद भारत माता की जय और वंदे मातरम की आवाज सुनकर वे अपने बल्ले से बाहर आए उन्होंने देखा कि जेल को चारों ओर से शस्त्र पुलिस ने घेर रखा है और जेल के अंदर लग रहे हैं ना रोकने तथा बढ़ती जा रही है कुछ स्वशासन का हो हो उन्होंने यह सूचना कांग्रेस कमेटी के दफ्तर को टेलीफोन पर दे दी कांग्रेस कमेटी वालों को समझते देर नहीं लगी उस समय भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह सभा में भाग ले रहे थे यह सूचना पहुंच गई.

        उधर शाम को 6:45 पर तीनों क्रांतिकारियों भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया फांसी चढ़ने तक जेल में बंद अन्य सभी कैदियों ने क्रांतिकारियों के नारों का पूरा साथ दिया फांसी के तुरंत बाद जेल के दीवार तोड़कर विशेष ट्रकों में शवों को रखकर अधिकारियों ने सशस्त्र पुलिस की निगरानी और लाहौर से कई किलोमीटर दूर फिरोजपुर के निकट सतलाज नदी के किनारे ले जाकर चुपचाप उनका दाह संस्कार कर दिया और आनन-फानन में शव को नदी में फेंक दिया अंग्रेजों की गणित हरकत भी ज्यादा देर तक शासकीय सूचना जेल के बाहर नारे लगा रही विशाल भी तक पहुंच गई देखते ही देखते साल जो इकट्ठा हो गया लोगों ने भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को निकालकर संस्कार किया.

            इसमें दो राय नहीं है कि क्रांतिकारी आंदोलन इन पूरा दारू के प्रति में बलिदान नहीं उनका नामोनिशान मिटा देने का षड्यंत्र रचने वाले अंग्रेजों को 16 वर्ष बाद स्वयं अपना बोरिया बिस्तर बांध कर भारत से चले जाने को विवश कर दिया क्रांतिकारी शहीदों को स्मृति को हमारा कोटि-कोटि नमन.

          ऐसे वीरों से भारत की धरती में हमेशा ही वीरता उत्पन्न होती रहती है अगर हम बात करें आज भारत को आजाद हुए 70 वर्ष से अधिक हो चुका है जिस आजाद भारत में अब सांस ले रहे हो उसके लिए एक नंबर से घर चला था कई सुर वीरों के बलिदान के बाद हमें यह सुख प्राप्त हुआ है. इस आजादी को हम हमेशा के लिए बरकरार रखना चाहते हैं आज के आधुनिक युग में भी कई तरह के आंदोलन हम लोगों को देखने को मिलते हैं जैसे कि किसान आंदोलन अन्ना आंदोलन जोकि आधुनिकता की और इन आंदोलनों में एक क्रांतिकारी आजादी की भावना का दर्शन होता रहता है.